
संवाददाता- प्रभात मोहंती..
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने आजीविका मिशनों से जुड़ाव पर दी सहमति
महासमुंद : बाल श्रम की बढ़ती समस्या और बाल अधिकारों के संरक्षण की दिशा में सामाजिक कार्यकर्ता श्री सुरेश शुक्ला द्वारा उठाए गए एक महत्वपूर्ण सुझाव को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR), भारत सरकार द्वारा गंभीरता से लिया गया है। श्री शुक्ला ने आयोग को यह प्रस्ताव प्रेषित किया था कि ग्राम स्तर पर गठित स्व-सहायता समूहों (SHGs) को बाल अधिकार अधिनियम तथा संबंधित कानूनी प्रावधानों की विस्तृत जानकारी प्रदान कर उन्हें इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से प्रशिक्षित किया जाए।
इस सुझाव की न केवल सराहना की गई, बल्कि आयोग द्वारा इस विचार को निकट भविष्य में राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) तथा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के साथ समन्वयित कर देशभर में लागू करने की दिशा में सहमति व्यक्त की गई है। यह पहल बाल अधिकारों के प्रति जन-जागरूकता को निचले स्तर तक पहुँचाने में एक अत्यंत प्रभावी और दूरगामी कदम माना जा रहा है।
श्री शुक्ला का मानना है कि "स्व-सहायता समूह ग्रामीण और शहरी समुदायों के बीच भरोसेमंद सामाजिक इकाइयाँ हैं, जो महिलाओं, युवाओं एवं आम नागरिकों के साथ प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी होती हैं। यदि इन्हें बाल अधिकारों की जानकारी दी जाए, तो ये समाज में बाल श्रम, बाल विवाह, बाल तस्करी और बाल शोषण जैसी समस्याओं के विरुद्ध सशक्त प्रहरी की भूमिका निभा सकती हैं।"
आयोग द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि स्व-सहायता समूहों को प्रशिक्षित करने के लिए राज्य स्तरीय बाल संरक्षण समितियाँ, चाइल्डलाइन 1098, स्थानीय एनजीओ, और पंचायत स्तरीय संस्थाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। प्रशिक्षण मॉड्यूल स्थानीय भाषा में तैयार कर उन्हें डिजिटल और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से सुलभ कराया जाएगा। इससे न केवल बाल श्रम के मामलों की पहचान और रिपोर्टिंग में सुधार आएगा, बल्कि समय पर हस्तक्षेप और पुनर्वास की प्रक्रिया भी प्रभावी हो सकेगी।
यह पहल भारत सरकार की 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ', 'समग्र शिक्षा अभियान' एवं 'बाल सुरक्षा नीति' जैसी योजनाओं को भी प्रत्यक्ष रूप से समर्थन प्रदान करेगी। साथ ही, यह संविधान में उल्लिखित बालकों के अधिकारों को संरक्षित करने और अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा के अधिकार को सशक्त करने की दिशा में एक ठोस पहल मानी जा रही है। सामाजिक कार्यकर्ता श्री सुरेश शुक्ला के इस सुझाव को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति मिलना न केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह उस जन-संवेदनशीलता का परिचायक भी है जो समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े बालक के जीवन में बदलाव लाने के संकल्प से प्रेरित है।