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    व्याख्याता जिन्होंने कक्षा दसवीं एवं बारहवीं में अपने विषय में शतप्रतिशत परीक्षा परिणाम दिए उन्हें सम्मानित किया गया !

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    महासमुन्द चोपडा राईसमिल बेमचा के पास हुये ट्रक चोरी (माल सहित) के मामले में 02 आरोपी गिरफ्तार।

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    पण्डरीपानी लूट के मामले में पत्थलगांव पुलिस को मिली सफलता सभी 09 आरोपी 24 घण्टे के भीतर पुलिस के गिरफ्त में लूटी गई रकम भी बरामद

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    रायपुर में प्लेसमेंट कैंप का आयोजन आज...मार्केटिंग मैनेजर ,कंप्यूटर ऑपरेटर सहित विभिन्न पदों पर 367 युवाओं की जाएगी भर्ती

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    रोजगार मेले का आयोजन- शिक्षक, मार्केटिंग-सेल्स एक्सिक्यूटिव, नर्सिंग, सुपरवाजर, ड्राइवर आदि पदों के लिए होगा प्लेसमेंट

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    अवाम ए हिन्द द्वारा गरीबों को भूख से बचाने के लिए सुपोषण अभियान के साथ ही नशाखोरी से बचाने के लिए नशामुक्ति अभियान निरतंर  जारी

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    सिद्धहस्त शिल्पी होंगे सम्मानित: मंत्री गुरु रूद्रकुमार

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    रायपुर बूढ़ा तालाब मन्दिर में अब ब्राह्मणों को बैठने से मना किया जा रहा है और ब्राह्मण समाज मौन

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    निःशुल्क कोरोना टीकाकरण को बात कहकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिर चरितार्थ किया कि भूपेश है तो भरोसा हैं !

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    छत्तीसगढ़ योग आयोग द्वारा चलाई जा रही निःशुल्क योग कक्षाएं...

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    कुपोषित भोजन भी बन सकता है कमजोर याददाश्त का कारण, डाइट में शामिल करें ये चीजें

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    वैक्सीन लगाने के बाद भी मास्क लगाना आवश्यक :डाॅ सुंदरानी

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    फिजियोथेरेपी करने की इच्छा रखने वाले छात्रों छात्राओं के लिए राज्य सरकार ने दिया आखिरी मौका..

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    राष्ट्रीय सघन पल्स पोलियो अभियान 31 जनवरी को

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छत्तीसगढ़ योग आयोग द्वारा चलाई जा रही निःशुल्क योग कक्षाएं...

Posted on :25-Feb-2021
छत्तीसगढ़ योग आयोग द्वारा चलाई जा रही निःशुल्क योग कक्षाएं...

TNIS

फिट रहने के लिए रोज पहुंचे राजधानी के कलेक्टोरेट उद्यान परिसर

रायपुर : छत्तीसगढ़ योग आयोग द्वारा राजधानी रायपुर के घड़ी चौक के पास, कलेक्टोरेट उद्यान परिसर में निःशुल्क योग कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है। यहां योग आयोग के मास्टर ट्रेनर्स द्वारा प्रतिदिन सुबह 6 से 7 बजे तक योग सिखाया जाता है। रायपुर शहर के नागरिक उद्यान में निःशुल्क योग सीख सकते हैं।

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उल्लेखनीय है कि कोरोना संक्रमण के कारण कलेक्टोरेट गार्डन में चल रही योग कक्षा बंद कर दी गई थी। समाज कल्याण मंत्री श्रीमती अनिला भेंड़िया की पहल पर एक फरवरी से पुनः योग कक्षाएं शुरू की गई हैं।

योग आयोग द्वारा योग के माध्यम से  नागरिकों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के साथ नशापान और दुर्रव्यसनों से दूर कर सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य से प्रतिदिन निःशुल्क योग प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

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कुपोषित भोजन भी बन सकता है कमजोर याददाश्त का कारण, डाइट में शामिल करें ये चीजें

Posted on :19-Feb-2021
कुपोषित भोजन भी बन सकता है कमजोर याददाश्त का कारण, डाइट में शामिल करें ये चीजें

नई दिल्ली : क्या आप अक्सर चीजें रखकर भूल जाते हैं या फिर तारीखें याद करने में आपको परेशानी होती है। अगर इन सवालों का जवाब हां में है और आप इसे बढ़ती उम्र का असर समझकर नजरअंदाज कर रहे हैं तो सतर्क हो जाएं। याददाश्त कमजोर होना बढ़ती उम्र का ही लक्षण नहीं है बल्कि कुपोषण की तरफ भी इशारा करता है। आइए जानते हैं कमजोर याददाश्त के पीछे जिम्मेदार होते हैं आखिर कौन से बड़े कारण और कैसे करें इनसे बचाव।  

कमजोर याददाश्त के कारण-
-पोषणयुक्त भोजन की कमी
-बढ़ती उम्र के साथ याददाश्त का कमजोर होना
-दवाओं का अधिक सेवन
-अधिक तनाव
-ड्रग्स का अधिक सेवन
-दिमाग पर चोट लगना
-नींद की कमी

दिमाग तेज करने के लिए डाइट में शामिल करें ये चीजें-
आपके भोजन का आपकी दिमागी सेहत पर बहुत बड़ा असर देखने को मिलता है। यही वजह है कि डॉक्टर दिमाग तेज करने के लिए व्यक्ति को हरी पत्तेदार सब्जियां, विटामिन बी1 और बी 12 से युक्त आहार, भोजन में घी का नियमित उपयोग करने की सलाहस देते हैं। इसके अलावा रोजाना अपनी डाइट में एक गिलास गर्म दूध और बादाम, अखरोट और ब्लूबेरी , अलसी का तेल एवोकाडो को भी शामिल करें।

दिमाग तेज करने के लिए करें योग-
योग करने से मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है और व्यक्ति को तनाव की शिकायत भी कम होती है। योग एकाग्र शक्ति बढ़ाकर मस्तिष्क में रक्त परिसंचरण को अच्छा करने में भी मदद करता है। 

याददाश्त तेज करने के लिए इन चीजों से रहें दूर-
-तनाव से रहें दूर
-जटिल प्रश्नों और पहेलियों को सुलझाएं
-पर्याप्त नींद लें
-ड्रग्स से रहें दूर

साभार livehindustan

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वैक्सीन लगाने के बाद भी मास्क लगाना आवश्यक :डाॅ सुंदरानी

Posted on :04-Feb-2021
वैक्सीन लगाने के बाद भी मास्क लगाना आवश्यक :डाॅ सुंदरानी

TNIS

छत्तीसगढ़ में कोरोना वैैैक्सीनेशन शुरू हो गया है। पहले चरण में  2 लाख 67 हजार हेल्थ केयर वर्कर को टीका लगाया जाना हैै। लेकिन चिकित्सक अभी भी वही सावधानी बरतने को कह रहे हैं जैसे मास्क लगाना, सुरक्षित दूरी बनाए रखना, भीड़ में जाने से बचना। मेडिकल काॅलेज हाॅस्पीटल (मेकाहारा) के विशेषज्ञ चिकित्सक डाॅ ओ पी सुंदरानी का मानना है कि कोरोना संक्रमण पूरी तरह समाप्त नही हुआ है।

अभी भी कोविड के केस आ रहे हैं और मृत्यु भी हो रही है। इसलिए सभी को चाहे उन्हे कोरोना वैैैक्सीन लगा हो या नही,मास्क सही तरह से पहनना अत्यंत आवश्यक है। उन्होने कहा कि सेकंड डोज लेने के दो सप्ताह के अंदर आम तौर पर एंटीबाडी का सुरक्षात्मक स्तर  इम्यूनिटी विकसित होती है। इसीलिए वैैैक्सीन लगाने के बाद भी कोविड अनुरूप व्यवहार करना आवश्यक होगा जिससे कोरोना के खतरे को कम किया जा सकेगा।

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फिजियोथेरेपी करने की इच्छा रखने वाले छात्रों छात्राओं के लिए राज्य सरकार ने दिया आखिरी मौका..

Posted on :31-Jan-2021
फिजियोथेरेपी करने की इच्छा रखने वाले छात्रों छात्राओं के लिए राज्य सरकार ने दिया आखिरी मौका..

फिजियोथेरेपी करने की इच्छा रखने वाले छात्रों छात्राओं के लिए राज्य सरकार ने दिया आखिरी मौका..

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रायपुर:- राज्य सरकार ने फिजियोथेरेपी के लिए इच्छुक छात्रों छात्राओं को एक और मौका दिया है, काउंसिलिंग की तारीख बढ़ा दी है। 9 फरवरी तक छात्र आवेदन कर सकतें हैं। राज्य शासन ने अपनी वेब पोर्टल खोल दी है। बैचलर ऑफ फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए नीट में शामिल सभी छात्र फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम के लिए (अंतिम अवसर) पंजीयन करा सकते हैं। 9 फरवरी तक पुनः ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है। ऑनलाइन आवेदन के साथ ही संस्था का चयन भी करना है। क्योंकि संस्था चयन के लिए अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा।

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फिजियोथेरेपी के लिए प्रदेश का इकलौता प्राइवेट कॉलेज अपोलो दुर्ग में है। डायरेक्टर आशीष अग्रवाल ने बताया कि फिजियोथैरेपी एक स्नातक पाठ्यक्रम है। जिसकी अवधि पूर्ण करने में 4 वर्ष तथा 6 माह लगते हैं। जिसमें 4 वर्ष अध्ययन और प्रायोगिक प्रशिक्षण के साथ 6 माह का इंर्टनशिप होता है। आपके जानकारी के लिए बता दें कि छत्तीसगढ़ में 2002 से फिजियोथेरेपी काॅलेज प्रारंभ हुआ है। छत्तीसगढ़ में एक शासकीय व एक निजी क्षेत्र की फिजियोथेरेपी महाविद्यालय का संचालन किया जा रहा है। अपोलो काॅलेज  ऑफ फिजियोथेरेपी  के छात्रों को  फिजियोथैरेपी में न सिर्फ भारत बल्कि अन्य  देशों में भी जाकर अच्छे पैकेज में कार्य कर रहे है। 7 एकड़ भूमि में संचालित अपोलो कॉलेज ऑफ फिजियोथैरेपी में आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशालाएं है। इसके अलावा लाईब्रेरी, सेमिनार हॉल, छात्र-छात्राओं के लिए पृथक-पृथक छात्रावास की सुविधा उपलब्ध है। ज्ञातव्य हो कि अपोलो कॉलेज के विद्यार्थियों को जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सालय सेक्टर 9 हॉस्पिटल भिलाई में प्रायोगिक कार्य की अनुमति प्राप्त है।

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राष्ट्रीय सघन पल्स पोलियो अभियान 31 जनवरी को

Posted on :30-Jan-2021
राष्ट्रीय सघन पल्स पोलियो अभियान 31 जनवरी को

TNIS

लगभग 35 लाख से ज़्यादा बच्चों को पिलाई जाएगी पोलियो की दवा

लगभग 14 हज़ार पोलियो बूथ और लगभग 28 हज़ार घर-घर भ्रमण दल जायेगे
राज्य भर में टीमें पिलायेंगी पोलियो की दो-दो बूंद

रायपुर : राष्ट्रीय पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान 31 जनवरी से प्रदेशभर में चलाया जाएगा। इस अभियान के तहत 0 से 5 वर्ष के बच्चों को पल्स पोलियो की दवा पिलाई जाएगी। अभियान के प्रथम दिन पोलियो बूथ, दूसरे और तीसरे दिन स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर बच्चों को दवा पिलाएंगे।

स्वास्थ्य मंत्री माननीय टी.एस सिंहदेव ने राज्य के समस्त अभिभावकों से अपील की है कि वह अपने घर तथा आसपास के 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों को पोलियो बूथ ले जाकर पल्स पोलियो की खुराक अवश्य पिलाएं और राष्ट्रीय पल्स पोलियो के कार्य में सहयोग कर देश को  प्रदेश को अपने जिले को अपने गांव को अपने घर को पोलियो मुक्त करना, हम सब का सामाजिक दायित्व भी है ।

राज्य नोडल अधिकारी डॉ. अमर सिंह ठाकुर ने बताया, इस अभियान के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से तैयारियां की जा रही हैं। राज्य के लगभग 35 लाख बच्चों को प्लस पोलियो अभियान के तहत आज जनवरी को आंगनबाड़ी केंद्रों, प्राथमिक शाला, उप-स्वस्थ्य केंद्रों से लेकर प्राथमिक, सामुदायिक, जिला अस्पतालों, मातृ शिशु अस्पतालों में पोलियो की खुराक पिलाई जाएगी।

विश्व स्वास्थ संगठन ने मार्च 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया था । लेकिन पोलियो के खतरे को देखते हुए भारत सरकार अभी भी वर्ष में एक बार पल्स पोलियो का अभियान चला रही है ताकि भारत में पोलियो मुक्त की स्थिति बनी रहे ।

भारत में 13 फरवरी 2020 को पोलियो मुक्त राष्ट्र के रूप में 9 वर्ष पूर्ण किए हैं । छत्तीसगढ़ प्रदेश में पोलियो का आखिरी प्रकरण 18 वर्ष पूर्व वर्ष 2002 में बिलासपुर जिले के मस्तूरी विकासखंड में पाया गया था ।

डॉ. अमर सिंह ठाकुर ने कहा इसके पश्चात भी पोलियो का खतरा बना हुआ है। विश्व के तीन देश (पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, नाइजीरिया) में पोलियो का संक्रमण अभी भी जारी है । इसमें से दो देश हमारे पड़ोसी देश है इस कारण पोलियो का खतरा भारत में हमेशा बना रहता है । इसी क्रम में 31 जनवरी 2021 से पल्स पोलियो अभियान चलाया जाएगा ।

उन्होने बताया स्वास्थ्य विभाग ने पल्स पोलियो के सफल संचालन के लिए राज्य भर में लगभग 14396 पोलियो बूथ और लगभग 28800 घर-घर भ्रमण दलों का आयोजन करके लगभग 35 लाख 80 हजार 949 बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाने का लक्ष्य है । इस अभियान में  0 से 5 साल के बच्चों को 31 जनवरी को पोलियो  बूथ पर 1 और 2 फरवरी को घर-घर जाकर छूटे हुए बच्चों की पहचान कर उन्हें पल्स पोलियो की खुराक पिलाई जाएगी ।

शहरी क्षेत्रों के बूथों की मॉनिटरिंग के लिए 5 अधिकारी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 15 अधिकारियों को नियुक्ति किया गया है । बूथ में किसी प्रकार की लापरवाही न हो इसके लिए मॉनिटरिंग अधिकारी लगातार बूथों का मुआयना करते रहेंगे। इसके लिए राज्य के सभी जिलों में विभिन्न सार्वजनिक भवनों, बस स्टैण्ड आदि में लगभग 15000 टीकाकरण केन्द्र बनाए गए हैं। इन केन्द्रों में बच्चों को पोलिया की दवा दो-दो बूंद पिलाने के लिए शासकीय कर्मचारियों और मितानिनों सहित अन्य कर्मियों को मिलाकर टीकाकरण दलों का गठन किया गया है।
डॉ सिंह ने कहा अभियान को कोविड-19 की गाइडलाइन अनुसार ही मनाया जाएगा । जिसमें मास्क पहनना, दो गज की दूरी बनाए रखना, साबुन से हाथ धोना, शारीरिक दूरी का पालन भी किया जाएगा । अभियान के तहत सभी जिले के पहुंच विहीन दूरस्थ क्षेत्रों, झुग्गी झोपड़ी, मलीन बस्ती, ईट भट्ठा, अस्थाई बसाहटों आदि क्षेत्रों के बच्चों को दवा पिलायी जायेंगी। इसके साथ ही चलित जनसंख्या के हितग्राही बच्चों को बस स्टैंड और  रेल्वे स्टेशन पर ट्रांजिट दलों के माध्यम से बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई जायेगी। मेला और हाट बाजारों में भी दवा पिलाने के लिये दलों को तैनात किया जावेगा। शहर के बडे़ आवासीय क्षेत्रों में ही पोलियो बूथ सेंटर बनाया गया है। प्रदेश में पोलियो के एक भी प्रकरण नहीं मिला है, लेकिन आगामी कुछ साल तक बच्चों को पोलियो की दवा नियमित देना जरूरी है। ताकि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे।

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सफेद प्याज की जानिए बेहतरीन फायदे...

Posted on :13-Jan-2021
सफेद प्याज की जानिए बेहतरीन फायदे...

एजेंसी 

नई दिल्ली : प्याज हमारे खाने का अहम हिस्सा है। प्याज ना सिर्फ हमारे खाने का स्वाद बढ़ाती हैं बल्कि हमारी सेहत के लिए भी उपयोगी है। प्याज में भी सफेद प्याज की बात करें तो वो सेहत का ख़ज़ाना है। सफेद प्याज ना सिर्फ इंसान की आयु बढ़ाती बल्कि ये कई गंभीर बीमारियों का इलाज भी करती है।

सफेद प्याज में पानी की प्रचुर मात्रा होती है सर्दी-गर्मी इसे खाने से बॉडी में पानी की कमी पूरी होती है। गर्म तासीर की ये प्याज आपको सर्दी जुकाम से बचाती है। सफेद प्याज बॉडी में खून की कमी पूरी करने के साथ ही हड्डियों के रोगों से भी छुटकारा दिलाती है । दिल के रोगों से लेकर ब्लड प्रेशर तक को कंट्रोल करती है सफेद प्याज। आइए जानते हैं सफेद प्याज खाने के बेहतरीन फायदो के बारे में।

पथरी से निजात दिलाती है सफेद प्याज:

अगर आपको पथरी की शिकायत है तो आप सफेद प्याज का सेवन करना शुरू कर दें। सफेद प्याज का रस पथरी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। सुबह खाली पेट प्याज का रस पीने से पथरी के दर्द और पथरी से जल्द ही छुटकारा मिल सकता है।


गले की खराश दूर करता है:

सर्दी में गले में खराश रहती है तो सफेद प्याज का इस्तेमाल करें। इसके सेवन से गले की खराश, सर्दी या कफ से निजात मिलेगी। गुड़ या शहद के साथ सफेद प्याज का रस लेने आपको जल्दी राहत मिलेगी।

शुगर कंट्रोल करती है सफेद प्याज:

शुगर के मरीजों के लिए प्याज बेहद मुफीद है। प्याज खाने से शरीर में इंसुलिन बनाता है, इसलिए शुगर के मरीजों को नियमित रूप से हर दिन इसे खाना चाहिए।

दिल की सेहत का ख्याल रखती है:

सफेद प्याज ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करती है। इसमें पाया जाने वाला मिथाइल सल्फाइड और एमीनो एसिड कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करता है, इस तरह आप दिल के रोगों से बच सकते हैं।

गाठिया का इलाज करती है:

अगर आप गठिया या जोड़ों के दर्द से परेशान है तो प्याज के रस से मालिश करें। प्याज के रस से मालिश करने पर तुरंत आराम मिलता है। प्याज के रस को सरसों के तेल में मिलाकर मालिश करने से जोड़ों के दर्द से आराम मिलता है।  

 

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सर्दी में आंवला खाने के हैं इतने जबरदस्त फायदे, इस तरह करें इस्तेमाल

Posted on :24-Dec-2020
सर्दी में आंवला खाने के हैं इतने जबरदस्त फायदे, इस तरह करें इस्तेमाल

एजेंसी 

नई दिल्ली : खाने-पीने की जब भी बात आती है, तो मौसम का अहम रोल होता है। जैसे, अक्सर लोग इस बात को लेकर दुविधा में रहते हैं कि सर्दियों में कौन-सी चीजें नहीं खानी चाहिए या गर्मियों में जो चीजें वे फिट रहने के लिए खाते आ रहे हैं, क्या ठंड में उनका सेवन छोड़ देना चाहिए? आंवले के बारे में भी ज्यादातर लोग सोचते हैं कि ठंड में आंवला नहीं खाना चाहिए लेकिन आयुर्वेद के अनुसार ठंड के मौसम में आंवले का सेवन आपको कई बीमारियों से बचाता है। आंवला जिसे इंडियन गूसबेरी भी कहा जाता है, हमारे स्वाथ्यय  के लिए बेहद फायदेमंद है। आइए, जानते हैं ठंड में आंवला खाने के फायदे- 

बॉडी को डिटॉक्स करता है आंवला
आंवला एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होता है और बॉडी को डिटॉक्स करने में मदद करता है। इसके अलावा शरीर की इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी मदद करता है। आंवला खाने का सबसे अच्छा समय सुबह होता है। यह शरीर से अतिरिक्त विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।

विटामिन सी से भरपूर होता है आंवला 
आंवला विटामिन सी का काफी अच्छा  स्रोत है। इसमें एक संतरे की तुलना में 8 गुना अधिक विटामिन सी होता है और 1 आंवले में संतरे से 17 गुना अधिक एंटीऑक्सिडेंट होता है। विटामिन सी के साथ-साथ यह कैल्शियम का भी एक समृद्ध स्रोत है। यह आपको कई मौसमी बीमारियों से दूर रखने के साथ-साथ सर्दी या खांसी में भी राहत दिलाता है।

वायरल इंफेक्शन से बचाव 
आंवला में एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन सी आपके मेटाबॉलिज्मह को बढ़ावा देने और सर्दी और खांसी सहित वायरल और बैक्टीरियल बीमारियों को रोकने में मदद करता है। आंवले का कसैला स्वाद ही आपकी सेहतमंद रखता है इसलिए आप इसकी कैंडी या फिर आंवला, गुड़ और सेंधा नमक के मिश्रण से तैयार करके सेवन कर सकते हैं।

स्किन और बालों को रखें स्वस्थ
आंवला आपकी त्वाचा और बाल दोनों के लिए अच्छा है। यह बालों के लिए टॉनिक का काम करता है क्योंंकि यह रूसी से लेकर बालों के झड़ने की समस्या को रोकता है। इससे बालों की ग्रोथ में सुधार होता है। वहीं त्वचा की बात की जाए, तो आंवला सबसे अच्छा एंटी एजिंग फल है।

इस तरह इस्तेमाल करें आंवला
आयुर्वेद के अनुसार यदि आप रोज सुबह आंवले का रस शहद के साथ पीते हैं, तो आप दमकती हुई और स्वस्थ त्वचा पा सकते हैं। 2 चम्मच शहद के साथ 2 चम्मच आंवला पाउडर मिलाकर इसका सेवन भी कर सकते हैं। आप इसे दिन में तीन से चार बार ले सकते हैं। इस उपाय को प्राचीन काल से इस्तेमाल किया जाता है।

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परिवार नियोजन: पुरुषों को नसबंदी के लिए किया जाएगा जागरूक

Posted on :21-Nov-2020
परिवार नियोजन: पुरुषों को नसबंदी के लिए किया जाएगा जागरूक

TNIS

आज से विश्व पुरुष नसबंदी पखवाड़ा शुरु, 21 नवंबर से 4 दिसंबर तक होगा आयोजित, पुरुषों को नसबंदी के लिए किया जाएगा जागरूक, पहले चरण में मनेगादंपती संपर्क सप्ताह,

रायपुर : परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से पुरुष नसबंदी पखवाड़े का आयोजन स्वास्थ्य विभाग द्वारा 21 नवंबर से 4 दिसंबर तक किया जायेगा । विश्व पुरुष नसबंदी पखवाड़े को दो चरणों में कार्यक्रम चलाकर मनाया जायेगा।

प्रथम चरण में मोबिलाइजेशन सप्ताह 21 से 27 नवंबर तक तथा द्वितीय चरण में 28 नवंबर से 4 दिसंबर तक सेवा वितरण सप्ताह मनाया जाएगा। यह अभियान परिवार नियोजन में पुरुषों की भागीदारी, जीवन में लाए स्वास्थ्य और खुशहाली के नारे के साथ चलाया जाएगा।

पुरुष नसबंदी पखवाड़े की जानकारी देते हुए ज़िला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.मीरा बघेल ने बताया, पखवाड़े के माध्यम से पुरुष नसबंदी के बारे में समाज में जागरूकता लाना और पुरुषों में नसबंदी को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना है।आज से योग्य दंपती संपर्क का प्रथम चरण शुरु किया जा रहा है । जिसमें योग्य दंपत्ति से चर्चा की जाएगी और पुरुष नसबंदी पर फैली भ्रांतियों को दूर करके पुरुषों को नसबंदी के लिए प्रेरित किया जाएगा । जो 21 से लेकर 27 नवंबर तक चलेगा। पखवाड़े के अंतर्गत समस्त गतिविधियों को कोविड-19 संबंधित समस्त सावधानियां एवं सलाह को सुनिश्चित करते हुए मनाया जाएगा। इस दौरान मुख्यत: शारीरिक दूरी, मास्क पहनने, संक्रमण की रोकथाम का पूर्णता पालन सुनिश्चित किया जाएगा ।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के उपयोग से सूचनाओं का आदान प्रदान के साथ ही जिला एवं विकासखंड के अधिकारियों का क्षमता वर्धन भी किया जाएगा, शारीरिक दूरी एवं कोविड-19 के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए पखवाड़ा 21 नवंबर से मनाया जाएगा जोकि अगले 2 सप्ताह तक चलेगा, इस दौरान मुख्यता वेसेक्टॉमी यानि पुरूष नसबंदी पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जाएगा । इस दौरान योग्य दम्पत्तियों से संपर्क कर उनको पुरुष नसबंदी के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

स्वास्थ्य केंद्र पर आयोजित होने वाली गतिविधियां

केंद्र पर पुरुष नसबंदी सेवा और इसके फायदे को प्रदर्शित किया जाएगा । नसबंदी के तीन माह उपरांत (जांच में शुक्राणु संख्या शून्य पाए जाने पर) ही प्रमाण पत्र हितग्राही को प्रदान किया जाएगा । भारत सरकार द्वारा निर्देशित समस्त मानकों एवं दिशा निर्देशों का पालन समस्त स्तरों पर सुनिश्चित किया जाएगा ।

मोबिलाइजेशन फेस में आयोजित की जाने वाली गतिविधियां

अधिक से अधिक प्रचार प्रसार किया जाएगा जिसमें व्यक्तिगत चर्चा और पुरुष नसबंदी के फायदे हितग्राहियों को बताये जाऐंगे। ‘मोर मितान मोर संगवारी’ का आयोजन दिशा निर्देश के अनुसार किया जाएगा । साथ ही पुरुष नसबंदी से संबंधित मिथकों को दूर करने के लिए परामर्श भी प्रदान किया जाएगा ।  प्रचार प्रसार के लिए डिजिटल माध्यम के प्रयोग को बल दिया जाएगा । कंटोनमेंट एवं बफर जोन में मोबाइल वेन की व्यवस्था कर प्रचार प्रसार किया जाएगा। प्रचार प्रसार के दौरान कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम के लिए पूरी सावधानी रखी जाएगी कहीं भी अधिक भीड़ एकत्रित ना हो इसका भी ध्यान रखा जाएगा

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सामाजिक जागरूकता से एनीमिया पर मिलेगी जीत

Posted on :29-Oct-2020
सामाजिक जागरूकता से एनीमिया पर मिलेगी जीत

रीनू ठाकुर, सूचना सहायक

रायपुर: एनीमिया या शरीर में खून की कमी आज एक बड़ी समस्या है जो कुपोषण का ही एक प्रकार है। इसमें रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं अर्थात हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। सामान्यतः महिलाओं में 12 ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम हीमोग्लोबिन, गर्भवती महिलाओं में 11 ग्राम प्रति डेसीलीटर और पुरूषों में 13 ग्राम प्रति डेसीलीटर हीमोग्लोबिन से कम होना एनीमिया माना जाता है। हीमोग्लोबिन शरीर में आक्सीजन के परिवहन के लिए आवश्यक होते हैं। इसकी कमी से उत्पन्न विकार को ही एनीमिया कहा जाता है। हीमोग्लोबिन मुख्य रूप से आयरन और प्रोटीन का बना होता है। इसके प्रमुख घटक आयरन की कमी होने से भी शरीर में लाल रक्त कणिकाओं का बनना कम हो जाता है। कई बार इससे मरीज की जान भी चली जाती है। इससे बचने के लिए मरीज को आयरन युक्त पोषक पदार्थ खाने की सलाह दी जाती है।

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    भारत में एनीमिया की स्थिति देखी जाए तो महिलाओं और किशोरियों में सामान्यतः एनीमिया अधिक देखा गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वेक्षण-4 (एनएफएचएस-4) के अनुसार 15 से 49 आयु वर्ग की 53 प्रतिशत महिलाएं और 23 प्रतिशत पुरूष एनीमिक पाए गए हैं। सर्वे के अनुसार छत्तीसगढ़ में 15 से 49 आयु वर्ग की 47 प्रतिशत महिलाएं और किशोरियां एनीमिया से पीड़ित हैं। इससे पता चलता है कि लगभग आधी फीसदी महिलाएं  एनीमिया से पीड़ित हैं। इसी तरह 6 से 59 माह के  41.6 प्रतिशत छोटे बच्चों में एनीमिया पाया गया है। राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार 24 महीनों तक के बच्चों में एनीमिया होने की दर अधिक देखी गई है।

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    छत्तीसगढ़ में कुपोषण और एनीमिया की स्थिति को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने 2 अक्टूबर 2019 से मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूआत की गई है। योजना के तहत महिलाओं और बच्चों को गर्म पौष्टिक भोजन,स्थानीय स्तर पर उपलब्ध विशेष अनाज से बने खाद्य पदार्थ और अतिरिक्त पौष्टिक आहार देने की पहल की गई है। महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अनिला भेंड़िया के नेतृत्व में इसके तहत कई विभागों के समन्वय और जन सहयोग से कुपोषण और एनीमिया के विरूद्ध जंग लड़ी जा रही है। मलेरिया मुक्ति अभियान, पोषण वाटिका के माध्यम से स्थानीय पोषक आहार की उपलब्धता, किशोरियों और गर्भवती माताओं को आयरन फोलिक एसिड की गोलियों का वितरण, कृमि मुक्ति अभियान के तहत बच्चों को कृमि नाशक दवा देने सहित स्वास्थ्य जांच और जागरूकता के कई उपाय किये जा रहे हैं। स्कूलों में बच्चों को मध्यान भोजन वितरण और पोषण के लिए किचन कार्डन भी कुपोषण मुक्ति की पहल का एक हिस्सा हैं।
    कुपोषण और एनीमिया को रोकने के लिए शासन प्रशासन द्वारा भरसक प्रयास लगातार किया जा रहा है, किन्तु इसमें अपेक्षाअनुसार परिणाम के लिए कुछ आवश्यक बिन्दुओं को समझना और उन पर अमल किया जाना जरूरी है। यह शासन के साथ व्यक्तिगत, परिवार और समाज की जागरूकता का विषय है। एनीमिया के लिए पर्याप्त पौष्टिक पदार्थों का अभाव ही जिम्मेदार नहीं बल्कि कई बार समुचित जानकारी और शिक्षा का अभाव, बीमारी, कम उम्र में शादी, अधिक बच्चे, गरीबी, सामाजिक और भौगोलिक परिस्थितयों के साथ ही आनुवांशिक कारण भी जिम्मेदार होते हैं।

एनीमिया के कारण और सुरक्षा के उपाय
    गर्भवती माताओं में गर्भस्त शिशु के लिए रक्त निर्माण होने के कारण एनीमिया होने की संभावना होती है। महिलाओं में किशोरावस्था और रजोनिवृत्ति के बीच की आयु में एनीमिया सबसे अधिक होता है। किशोर और किशोरियों में सामान्यतः आयरन की कमी के कारण खून की कमी (एनीमिया) होती है। कई बार पेट में कीड़ों और परजीवियों द्वारा  पोषक पदार्थ चूस लेने के कारण भी एनीमिया हो जाता है। मलेरिया होने पर भी शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की कमी हो जाती है। डायरिया और डिसेन्ट्री से भी बच्चों में पोषक पदार्थों की कमी हो जाती है जो एनीमिया का कारण हो सकती है।

    एनीमिया शरीर के लिए मौन शत्रु की तरह होता है। इससे अन्य बीमारियां होने की भी सभावना बढ़ जाती है। शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बहुत कम होने पर अन्य बीमारियों के उपचार और ऑपरेशन में दिक्कत आ सकती है। इससे प्रसव के समय महिलाओं की मृत्यु की संभावना भी अधिक रहती है। मां और बच्चों में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण कई बार बच्चों में विकलांगता तक देखी गई है। इससे उबरने के लिए खान-पान और साफ-सफाई से संबंधित व्यवहार में व्यापक परिवर्तन की जरूरत है। सबसे पहले हम अपने शरीर की पोषण आवश्यकताओं, कमियों और कमियों के कारण दिख रहे लक्षणों को समझें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें। इसमें स्थानीय उत्पाद और पोषक पदार्थ हमारी मदद कर सकतेे हैं।  

एनीमिया के लक्षण-
 एनीमिया के कारण व्यक्ति में जल्दी थकावट, कमजोरी, सांस फूलना, घबराहट, चक्कर आना, सुस्ती, बार-बार बीमार पड़ना, हाथ-पैरों में ठंडापन या सूनापन, सूजन और बेहोशी जैसे लक्षण दिखाई देने लगतेे हैं। त्वचा,जीभ,नाखूनों और पलकों के अंदर का रंग सफेद दिखने लगता है। महावारी में अधिक खून बहना भी किशोरियों में खून की कमी का लक्षण है। इन लक्षणों को नजरअन्दाज नहीं किया जाना चाहिए। अगर इन में से कोई भी समस्या है तो खून की कमी (एनीमिया) हो सकती है।

एनीमिया से बचाव-
खून की कमी से बचने के लिए पौष्टिक व आयरन युक्त भोजन, जैसे-हरी पत्तेदार सब्जियां (पालक, मेथी, सरसों सहजन, पुदीना इत्यादि), दालें (काला चना, सोयाबीन, तिल आदि), मांसाहारी आहार (मीट, मछली, मुर्गा, अण्डा) और अनाज, जैसे- गेहूं, ज्वार, बाजार, मूंगफली इत्यादि खाना चाहिए।
विटामिन-सी युक्त आहार नियमित रूप से लेने पर शरीर में आयरन युक्त भोजन आसानी से पच जाता है। ऐसा करने से आयरन की नीली गोली का प्रभाव भी अधिक होता है। आंवला, अमरूद, संतरा, कीनू, अनार, सीताफल, पपीता, नींबू, बेर, टमाटर, आम, फूलगोभी इत्यादि में विटामिन-सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। खाना खाने के साथ या उसके 2 घंटे पहले या 2 घंटे बाद तक चाय, कॉफी आदि नहीं पीनी चाहिए। इससे खाने से मिली आयरन का असर कम हो जाता है।

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हृदय रोगियों को ठंड में विशेष सावधानी की जरूरत

Posted on :29-Oct-2020
हृदय रोगियों को ठंड में विशेष सावधानी की जरूरत

डाॅ जावेद खान

कोरोना संक्रमण के ठंड में और अधिक बढने की संभावनाओं को देखते हुए विशेषज्ञ बार-बार सलाह दे रहे हैं कि इस दौरान अत्यधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है। राजधानी रायपुर के प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डाॅ जावेद अली खान, हृदय रोग से ग्रस्त मरीजों को विशेष सावधानी रखने की सलाह देते हैं। उनका  कहना है कि ठंड में हमारी धमनियां सिकुड़ जाती हैं और हृदय को भी रक्त आपूर्ति कम होती है। इसलिए इस समय ठंड से और कोरोना से दोनोें से अपने आप को बचा कर रखना है। बुजुर्गों को भी खासकर इसका ध्यान रखना है। संक्रमण से बचने के लिए अभी आपस में मेल-जोल कम रखना चाहिए और भीड़ की जगह जाने से बचना चाहिए। त्योहार मनाते समय भी कोविड प्रोटोकाल जैसे मास्क लगाना, दो गज की दूरी और समय-समय पर हाथ धोना, इन सबका पालन सभी को करना होगा।

            डाॅ जावेद ने कहा कि सर्दियों में सामान्य फ्लू,स्वाइन फ्लू आदि भी फैलते हैं इसलिए अभी किसी भी प्रकार के लक्षण दिखने पर तुरंत चिकित्सक के पास जाना चाहिए। सर्दी,खांसी के मरीजों को स्वयं दवाई न लेकर ,डाक्टर की सलाह से ही दवाई लेनी चाहिए।

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कोरोना काल में नौकरी छूटने का डर बढ़ा रहा मानसिक बीमारियां

Posted on :10-Oct-2020
कोरोना काल में नौकरी छूटने का डर बढ़ा रहा मानसिक बीमारियां

एजेंसी 

नई दिल्ली : कोरोना काल में नौकरी छूटने और कारोबार बंद होने पर लोग मानसिक बीमारियों के शिकार अधिक हो रहे हैं। मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार बीते छह माह में एंजाइटी के मरीजों की संख्या तीन गुना ज्यादा हो गई है। यदि व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हो तो अन्य बीमारी या संक्रमण फैलने का अधिक खतरा रहता है।  

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव त्यागी ने बताया कि लॉकडाउन में मानसिक रूप से पीड़ित मरीजों की संख्या दो से तीन गुना बढ़ गई है। इमसें अधिकांश ऐसे मरीज सामने आ रहे हैं, जो नौकरी छूटने के डर या कारोबार बंद होने से परेशान हैं। ऐसे में लोगों को मानसिक रूप से बीमार होने का अधिक खतरा रहता है। लॉकडाउन में युवा या वयस्क ही नहीं बच्चे भी अवसाद के शिकार हो रहे है।

स्कूल, कॉलेज, ट्यूश्न बंद होने के चलते वह अपना दिनचर्या केवल बंद कमरे में बिता रहे हैं। ऐसे में पढ़ाई के प्रति एकाग्रता नहीं रहती और बच्चे अन्य क्षेत्रों में दिमाग लगाते हैं। मानसिक दबाव के चलते वह अवसाद के शिकार हो रहे हैं। पिछले छह माह के आंकड़ों में आत्महत्या के मामले भी इसलिए बढ़ गए हैं। जहां माह माह में दस आत्महत्या का आंकड़ा था।

वहीं औसत अब 25 आत्महत्याएं हो रही हैं। हाली में जिले में विभिन्न युवाओं और छात्रों के आत्महत्या करने के मामले सामने आए हैं। ऐसे वक्त में लोगों को अपने मानसिक दबाव को कम करने के लिए अलग-अलग माध्यम से दिन को व्यस्त करना चाहिए। नकारात्मक सोच से हट कर अपने परिवार से या नजदीकि दोस्त से बात करनी चाहिए, जिससे मस्तष्कि में आने वाले गलत ख्याल कम होंगे।

अन्य बीमारी से बचने के लिए मानसकि स्वस्थ्य जरूरी
डॉ. संजीव त्यागी का कहना है कि यदि व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ हों तो वह संक्रमण और अन्य गंभीर बीमारियों से भी दूर रहेंगे। मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति में प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ऐसे में अन्य बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है। 

रसायन का असंतुलन मानसिक बीमारी का कारण
मनोवैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि मस्तिष्क के खास हिस्सों में विशिष्ट ग्रंथियो से निर्मित रसायन होते हैं, जिनकों न्यूरोट्रांसमीटर्स कहते हैं। यह रसायन सोच-विचार के जरीये, हमारे व्यवहार और आचरण को प्रभावित करते हैं। इसमें सेरोटोनिन (नींद, भूख व मनोदशा को नियंत्रित),  डोपामाइन(सुकुन और खुशी के लिए), एंडोकिन्स(संघर्ष के लिए), नोरेड्रिनेलिन(थकना दूर करने के लिए) आदि। इन रसायनों के असंतुलन से मानसिक बीमारी का खतरा रहता है। 

लोनी सीएचसी में लगेगा निशुल्क शिविर
जिला मानसिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ की ओर से विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर शनिवार को लोनी स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर एक कैंप का आयोजन किया जाएगा।

मानसिक बीमारी के लिए कांउसलिंग सेंटर जरूरी
कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल के साइकेट्रिस्ट डॉ. अमूल्य के सेठ ने बताया कि महामारी के बाद आने वाले दिनों में मानसिक स्वास्थ्य सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगीइस पर अभी से ध्यान देना जरूरी है। इसको सार्वजनिक स्वास्थ्य का एक अभिन्न अंग बनाने की जरुरत है। इसके लिए दवा स्टोर की तरह काउंसलिंग सेंटर खुलने जरूरी हैं।

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कोरोना से जंग में मास्क है रक्षा कवच

Posted on :07-Oct-2020
कोरोना से जंग में मास्क है रक्षा कवच

TNIS

रायपुर : कोरोना से जंग में मास्क हमारा रक्षा कवच है। कोरोना संक्रमण  से बचने के सरल किंतु प्रभावी उपाय हैं मास्क लगाना, दो गज की दूरी रखना और साबुन पानी से बीच -बीच में हाथ धोते रहना। मास्क क्यूं लगाना ये जानना भी जरूरी है। जब भी कोई व्यक्ति बात करता है, खांसता, छींकता या गहरी सांस भी लेता  है तो छोटी-छोटी बंूदे जिसे ’एरोसाल’ कहते हैं, मुंह या नाक से बाहर निकलती है। इन बंूदों के साथ वायरस भी बाहर आता है। यदि वह व्यक्ति कोरोना संक्रमित है तो कोरोना वायरस बाहर निकल कर 6 फीट कीे दूरी तक के व्यक्ति को भी पहुंचेगा और सामने वाले व्यक्ति के शरीर में भी वायरस पहुंच जाएगा। इसी से बचने के लिए सभी को मास्क लगाना और आपस में  6 फीट की दूरी रखना जरूरी है।

  इसके अलावा उन सतहों, टेबल ,कुर्सी, रेलिंग या कोई भी ऐसी वस्तु जिसके आस पास कोई संक्रमित व्यक्ति छींका, खांसा हो ,उस सतह या वस्तु को छूने के बाद यदि हम अपने मुंह,नाक और आंखों को छूते हैं तो कोरोना वायरस हमारे शरीर मेे प्रवेश कर जाता है। कुछ व्यक्तियों को बीमारी के लक्षण नही दिखते हैं फिर भी वह संक्रमित रहता है। मतलब वह अनजाने में बीमारी फैला रहा है। इसीलिए बीमारी से बचने के लिए सभी को मास्क पहनने और भीड़ से बचने को कहा जाता है।

   वैज्ञानिकों का मानना है कि बंद जगहें ,बंद कमरों में समूह में रहने से बचना चाहिए। इसके स्थान पर खुली जगह में रहकर गतिविधियां करनी चाहिए। संक्रमित व्यक्ति के बंद स्थान पर रहने से संक्रमण की संभावनाएं बढ़ जाती हैं और उसके उस स्थान से जाने के बाद भी वायरस वातावरण में रहता है।

    मास्क पहनने के बाद उसकी समुचित साफ-सफाई भी जरूरी है। कपड़े के मास्क को साबुन,गर्म पानी और कीटाणुनाशक से धोना और धूप में सुखाना जरूरी रहता है। सर्जिकल मास्क चार घंटे तक ही प्रभावी रहता हैI

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आयुर्वेद में जाने कोरोना से बचने के उपाय...

Posted on :24-Sep-2020
आयुर्वेद में जाने कोरोना से बचने के उपाय...

TNIS

बेमेतरा : छत्तीसगढ़ शासन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग रायपुर एवं संचालनालय आयुर्वेद योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा यूनानी सिद्ध एवं होम्योपैथी (आयुष) छ.ग. रायपुर कि निर्देशानुसार जिला आयुर्वेद अधिकारी बेमेतरा डाॅ. यशपाल सिंह ध्रुव ने कोरोना वायरस कोविड-19 के संक्रमण से बचाव एवं रोध प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु आयुर्वेदिक उपायों के संबंध मे जानकारी देते हुए बताया कि-पूरे दिन गर्म पानी पीना, प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट योगासन, प्राणायाम एवं ध्यान करना, हल्दी, जीरा, धनिया एवं लहसुन आदि मसालों का भेजन मे प्रयोग करना। साथ ही 40 ग्राम तुलसी, 10 ग्राम काली मिर्च, 20 ग्राम सांेठ, 20 दालचीनी इन सभी को सुखाकर पाउडर बनाकर हवा बंद डिब्बे मे बंद रख लें और 03 ग्राम पाउडर को 150 मिली. पानी मे उबालें और आधा शेष रहने पर गुनगुना सेवन करें। या फिर 05 ग्राम त्रिकुट पाउडर, 3 से 5 पत्तियां तुलसी 01 लीटर पानी मे डालकर उबालें और आधा शेष रहने पर गुनगुना सेवन करें।

     जिला आयुर्वेद अधिकारी ने बताया कि मात्रा-व्यस्क हेतु-30 से 40 मिली मीटर. दिन मे दो बार, बच्चों हेतु (5 वर्ष से अधिक)-10 से 15 मिली. दिन मे दो बार सेवन करें। काढ़ा बनाने मे उपयोग होने वाले घटक द्रव्य शुंठी, मरीच, पिप्पली, गुडुची आदि सम्मिलित है। काढा बनाने की विधि-एक चम्मच क्लाथ मिश्रण को एक कप पानी (100 मिली.) में धीमी आंच पर उबालें। पानी आधा बचने पर छान कर पीयें। स्वाद हेतु आधा चम्मच गुड़ का प्रयोग भी कर सकते है। काढ़ा को प्रतिदिन दो से तीन बार सेवन करें। गोल्डन मिल्क विधि- 150 मिली. गर्म दुध मे आधा चम्मच हल्दी चूर्ण मिलाकर दिन मे एक से दो बार सेवन करें।

 

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दुर्ग : कुपोषण दूर करने को ऑनलाइन दी जा रही पोषण शिक्षा

Posted on :18-Sep-2020
दुर्ग : कुपोषण दूर करने को ऑनलाइन दी जा रही पोषण शिक्षा

दुर्ग : खाद्य एवं पोषण बोर्ड, रायपुर द्वारा दुर्ग जिले में धमधा महिला एवं बाल विकास विभाग के परियोजना क्षेत्र के सभी 7 सेक्टर – धमधा, डगनिया, कोड़ियां, पेंड्रा वन, घोठा, बोरी और लिटिया में आज पोषण शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन ऑनलाइन किया गया। प्रतिभागियों को ऑनलाइन ही पौष्टिक व्यंजन बनाकर दिखाये गये। ऑनलाइन परिचर्चा में महिला पर्यवेक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व हितग्राहियों ने भी पोषण आधारित भोजन के महत्व पर चर्चा की ।

ऑनलाइन डेमो में पोष्टिक भेल बनाना बताया गया। भेल बनाने के लिए मुर्रा, फूटा चना, अनार के दाने, खीरा, र्मिची, नीबू, धनिया, चाट मसाला, नमक, टमाटर व जाम सभी को काट कर मिक्स कर पोष्टिक भेल बनाने की विधि का प्रशिक्षण दिया गया। इसके अलावा बेबीनार में फ्रूट चार्ट का डेमो बताया गया।

राष्ट्रीय पोषण माह जनसाधारण तक पोषण की जानकारी पहुचाने तथा कुपोषण को दूर करने के लिए मनाया जाता है । पोषण बोर्ड के राज्य प्रभारी मनीष यादव ने बताया इस वर्ष का पोषण माह तीन मुख्य बातो पर केन्द्रित है जिसमे पोषण वाटिका को बढावा देना, स्तनपान तथा अतिकुपोषित यानी सीवियर एक्यूट मालन्यूट्रिटेड (सैम) बच्चों  की पहचान व प्रबंधन शामिल है। ऐसे गंभीर रुप से कुपोषित बच्चों की पहचान कर बाल मृत्युदर में कमी लायी जा सकती है।

सैम प्रबंधन के तहत पांच वर्ष से कम उम्र के गंभीर कुपोषित की पहचान माक-टेप्स (मिड अपर आर्म सरकमफेरेंस टेप्स) मध्य ऊपरी भुजा की नाप से होती है। यदि भुजा की माप 11.5 सेंटीमीटर है तो समझिये बच्चा गंभीर कुपोषित श्रेणी का है। यदि 11.5 सेंटीमीटर से 12.4 सेंटीमीटर है तो कुपोषित की श्रेणी में माना जाएगा और 12.5 सेंटीमीटर है तो वह सामान्य श्रेणी में माना जाएगा। दोनों पैरों में गडढे़ वाली सूजन के बच्चे भी गंभीर कुपोषित की श्रेणी में माने जाते हैं।

समुदाय स्तर पर यह जागरुकता होनी चाहिए कि भोजन की थाली में खाने के लिए जो भी भोजन शामिल करे उसके हर निवाले में पोषण हो तथा स्वास्थ्य की दृष्टी से सही हो। अच्छे पोषण की सहायता से हम बच्चो के मानसिक और शारीरिक विकास में सुधार ला सकते हैं जिस तरह का पोषण हम अपने बच्चो को देंगे उसी के अनुरूप उसका विकास होगा और वह मानसिक व शारीरिक विकास के साथ ही आर्थिक और सामाजिक विकास भी कर सकेगा।

छह माह तक बच्चे के पोषण की जरूरत माँ के दूध से ही पूरी हो जाती है।  उसके बाद उसे माँ के दूध के साथ-साथ ऊपरी आहार की जरूरत होती है बिना इसके बच्चे का पूर्ण रूप से विकास संभव नहीं है।

घर की रसोई में ही उपलब्ध अनाज, दाल, फल और सब्जियों के द्वारा ही बच्चे का पोषण पूरा कर सकते है। यदि हम अपने भोजन का पूर्ण पोषण प्राप्त करना चाहते है तो स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना ही पड़ेगा । उन्होंने बताया हम अपना भोजन कितना भी पौष्टिक बना लेकिन यदि उसे गंदे बर्तन में रखकर खाएंगे, या गंदे हाथो से खाएंगे तो उसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिलने वाला है। इसलिए हमें तीन स्तरीय स्वच्छता का ध्यान रखना होगा जोकि व्यक्तिगत, घरेलू और सामाजिक स्वच्छता है ।

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सुपोषित थाली सजाकर दिया राष्ट्रीय पोषण माह का संदेश

Posted on :17-Sep-2020
सुपोषित थाली सजाकर दिया राष्ट्रीय पोषण माह का संदेश

व्हाट्सएप के माध्यम से भेज रहे जानकारी

पोषण आहार प्रदर्शनी लगाकर दिया जा रहा संदेश

महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा से चलाये जा रहे राष्ट्रीय पोषण माह में महिलाओं और बच्चों को पोषण आहार के साथ साथ कोविड-19 से बचने के लिए जागरुक कर संतुलित आहार लेने पर बल दिया जा रहा है ।

गर्भवती महिलाओं को बच्चों के जन्म के छह महीने बाद उसे उपरी आहार देने की बात गृह भेंट के माध्यम से बताई जा रही है । साथ ही  बच्चों के नियमित टीकाकरण और बेहतर स्वस्थ्य पर भी बल दिया जा रहा है ।

राष्ट्रीय पोषण माह 30 सितंबर तक चलाया जायेगा। इसी कड़ी में गुढ़ियारी सेक्टर की आंगनबाड़ी केंद्र पहाड़ीपारा में सुपोषित थाली सजाकर राष्ट्रीय पोषण माह का संदेश दिया ।

पहाड़ीपारा आंगनबाड़ी केंद्र की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुशीला बन्सोड़ ने बताया की व्हाट्सएप के माध्यम से गर्भवती महिलाओं को सुपोषित थाली बनाकर बताया जाता है कि गर्भकाल में सुपोषित थाली खाने से होने वाले बच्चे का सम्पूर्ण विकास  होता है ।

साथ ही बच्चों के माता-पिता को भी कहा गया कि बच्चों की थाली में दाल चावल सब्जी पापड़ अचार का समावेश होना चाहिए जो बच्चों के लिये महत्वपूर्ण है । ज्योतिबा नगर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लक्ष्मी तिवारी और शुक्रवारी बाजार आंगनबाड़ी बाड़ी कार्यकर्ता जया सिन्हा इन कार्यकर्ताओं ने बहुत ही सुंदर तरीके से पोषण माह को समझाया है ।

गुढ़ियारी सेक्टर की पर्यवेक्षक रीता चौधरी ने बताया की गुढ़ियारी सेक्टर अंतर्गत आंगनबाड़ी केंद्र कुंदरा पारा में पोषण माह में रेडी टू ईट फूड का वितरण किया गया एवं पोषण माह के महत्व को भी समझाया गया साथ ही साथ पोषण मटका बनाकर हितग्राहियों को वीडियो के माध्यम से भी जानकारी दी गई ।

गर्भवती महिला  एवं धात्री महिला को भी वीडियो बनाकर भेजा गया । इस अवसर पर पोषण एवं स्वास्थ्य की समझाइश दी गई  । सही पोषण देश रोशन  के बारे में हितग्राहियों को संबोधित किया गया एवं सुपोषण गीत वीडियो के माध्यम से हितग्राहियों के पास भेजा गया है

सेक्टर के अंतर्गत आने वाली सभी आंगनबाड़ी केंद्र पर सुपोषित थाली सजाकर एवं प्रदर्शनी लगाकर क्षेत्र की शिशुवती,गर्भवती महिलाओं और किशोरियों को राष्ट्रीय पोषण माह के तहत सुपोषित आहार सेवन का संदेश भी दिया जा रहा है । विशेष रुप से किशोरियों को माहवारी के दिनों के दौरान स्वच्छता रखने के तरीके और उसके फायदे  भी बताये जा रहे हैं ।इस दौरान सुपोषण के बारे में जागरूकता लाने के लिए चित्रकारी, स्लोगन तथा रंगोली द्वारा संदेश भी दिया जा रहा है।

कोरोना महामारी को लेकर स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखते हुए हाथ साबुन से धोकर ही भोजन करने, शारीरिक दूरी बनाकर रहने, मास्क का प्रयोग करने के प्रति भी जागरुक किया जा रहा है ।

पर्यवेक्षक रीता चौधरी ने कहा कि जिला कार्यक्रम अधिकारी अशोक पांडे के मार्गदर्शन में इसकी शुरुआत विधिवत तरीके से की गई है । प्रथम दिन जिला स्तर पर सामाजिक दूरी बनाकर मीटिंग ली गई और पोषण माह के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया ।

उनके द्वारा यह निर्देश दिया गया कि डिजिटल व्हाट्सएप के द्वारा वीडियो बनाकर ही हमें इस कोविड-19 में पोषण माह को फलीभूत करना है पोषण माह में जनप्रतिनिधि मितानिन स्वास्थ्य विभाग  सभी को सम्मिलित करते हुए डिजिटल माध्यम के द्वारा हितग्राहियों को स्वास्थ्य एवं पोषण की जानकारी दी जाए । साथ ही जिला कार्यक्रम अधिकारी के द्वारा प्रतिदिन इसकी समीक्षा भी की जा रही  है।

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दुर्ग : कोरोना महामारी से निपटने के लिए अब रात में भी होगी कोरोना की जाँच

Posted on :16-Sep-2020
दुर्ग : कोरोना महामारी से निपटने के लिए अब रात  में भी होगी कोरोना की जाँच

दुर्ग : जिले में कोरोना पॉजिटिव की रफ्तार पर लगाम कसने को स्वास्थ्य विभाग ने कमर कस ली है। फीबर अस्पतालों से लेकर कोविड-19 जांच केंद्रों में होने वाली भीड़ को कम करने के लिए जांच में तेजी लाने के उद्देश्य से अब रात में कोरोना की जाँच की जाएगी।

नाइट शिफ़्ट के लिए अलग से टीम लगाई जाएगी। ताकि जांच उसी दिन मिल सके। वहीं स्वास्थ्य विभाग 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों की सेहत को ध्यान में रखते हुए घर-घर जाकर स्वास्थ्य सर्वे भी करेगी। इसके लिए मितानिन और आरएचओ को सर्दी, खांसी, बुखार सहित अन्य बीमारियों से संबंधित लोगों की स्वास्थ्य देखभाल की जानकारियां देंगी। सीएमएचओ डॉ. गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया, ओल्ड एज में डेथ रेट को नियंत्रण करने में कोविड सेंटरों में सुविधाओं के साथ अस्पतालों में बेड की संख्या बढाने और ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था गंभीर मरीजों के लिए की जाएगी।

वहीं कोरोना महामारी को हराने के लिए अब निजी अस्पताल प्रबंधन से भी पूरी तरह सहयोग लिया जाएगा। निजी अस्पताल प्रबंधन से भी आईसीयू बेड की संख्या में इजाफा करने को कहा गया है। ताकि आपातकालीन सुविधाओं में मरीजों को बेहतर इलाज की सुविधाएं समय रहते मिल सकें।

डॉ. ठाकुर ने कहा, जांच में देरी न हो इसके लिए नाइट शिफ़्ट में सेम्पल टेस्ट लिया जाएगा। वर्तमान में जिला अस्पताल सहित अन्य सेंटरों में प्रतिदिन 1,000 सेम्पल का टेस्ट किया जा रहा है। सितंबर महीने में हर दिन मरीजों की संख्या में  इजाफा हो रहा है। इसलिए संभावित मरीजों की जाँच कर शीघ्र पहचान की जाएगी इसके साथ ही इलाज करने के लिए अस्पतालों में अतिरिक्त टीम की तैनाती भी की जा रही है

ताकि  डेथ रेट को कम किया जा साके । जिले के हॉट स्पॉट एरिया में भिलाई-3, खुर्सीपार, सुपेला सहित 20 अस्पतालों में जांच सेंटरों की संख्या को बढाया जा रहा है। वर्तमान में जिले के 40 स्वास्थ्य केंद्रों व 8 मोबाइल यूनिट द्वारा सेंपल लेकर जांच की जा रही है।

जिले में कोरोना संक्रमण को लेकर मिली जानकारी के अनुसार अब तक 6,588 मरीज संक्रमितों में से 2,857 लोग डिस्चार्ज होकर घर चले गए हैं। वहीं अब भी 3,675 मरीज कोरोना संक्रमित हैं जिनका इलाज विभिन्न कोविड अस्पतालों में जारी हैं।

स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार 14 सितंबर तक  जिले में 56 लोगों की मौत हुई है जिसमें 15 लोगों की मौत कोविड से और 41 लोगों की जान को-मॉर्बिडिटी यानी जो कोविड से पहले गंभीर बीमारियों से ग्रसित थे।

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पोषण के पांच सूत्र रखेगें बच्चे को तंदुरूस्त : स्वस्थ समाज बनाने पोषण व्यवहार के प्रति जागरूकता लाएं

Posted on :15-Sep-2020
पोषण के पांच सूत्र रखेगें बच्चे को तंदुरूस्त : स्वस्थ समाज बनाने पोषण व्यवहार के प्रति जागरूकता लाएं

TNIS

रायपुर : स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए पोषण व्यवहार में परिवर्तन आज एक आवश्यकता बन गई है। जीवन शैली के बदलाव से सामने आई कई बीमारियां हमारे लिए चुनौतियां बन गई हैं। कई देशों में मोटापा खान-पान की व्यवहारगत कमियों की वजह से तेजी से बढ़ रहा है। भोजन में पोषक तत्वों के अभाव ने लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर दिया है। 

पोषण के प्रति जागरूकता की कमी और समुचित पोषण का अभाव या उपेक्षा हमारे सामने कई प्रकार की बीमारियों के रूप में सामने आता है। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव कुपोषण का एक विश्वव्यापी समस्या बनकर उभरना है। कोरोना काल में लोगों को इसका महत्व गहराई से समझ आने लगा है। आहार के प्रति सही व्यवहार और जागरूकता से ही एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।

     रिसर्च में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का अधिक प्रभाव पाया गया है। राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वे-4 के अनुसार छत्तीसगढ़ के 5 वर्ष से कम उम्र के 37 प्रतिशत बच्चे कुपोषित और 15 से 49 वर्ष की 47 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के द्वारा 2 अक्टूबर 2019 गांधी जयंती के दिन से मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूआत कर गर्भवती महिलाओं और 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए गर्म भोजन की व्यवस्था की गई है, जिससे महिलाओं और बच्चों में पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सके। स्वस्थ बच्चा स्वस्थ समाज की आधारशिला होता है।

इस आधारशिला को मजबूत बनाने के लिए समुदाय स्तर पर सभी की सहभागिता और जन-जागरूकता बहुत जरूरी है। एक स्वस्थ जीवन के लिए तैयारी गर्भावस्था के दौरान ही शुरू कर देनी चाहिए। स्वस्थ बच्चे के लिए मां का भी स्वस्थ होना उतना ही जरूरी है। इसमें पोषण के पांच सूत्र- पहले सुनहरे 1000 दिन, पौष्टिक आहार, एनीमिया की रोकथाम, डायरिया का प्रबंधन और स्वच्छता और साफ-सफाई स्वस्थ नए जीवन के लिए महामंत्र साबित हो सकते हैं।        
1) पहले सुनहरे 1000 दिन- पहले 1000 दिनों में तेजी से बच्चे का शरीरिक एवं मानसिक विकास होता है। इनमें गर्भावस्था के 270 दिन और जन्म के बाद पहले और दूसरे वर्ष के 365-365 दिन इस प्रकार कुल 1000 दिन शामिल होते हैं। इस दौरान उचित स्वास्थ्य, पर्याप्त पोषण, प्यार भरा व तनाव मुक्त माहौल और सही देखभाल बच्चों का पूरा विकास करने में मदद करते हैं।

इस समय मां और बच्चे को सही पोषण और खास देखभाल की जरूरत होती है। इस समय गर्भवती की कम से कम चार ए.एन.सी. जांच होनी चाहिए। गर्भवती और धात्री महिला को कैल्शियम और आयरन की गोलियों का सेवन कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही संस्थागत प्रसव को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिससे मां और बच्चे का जीवन सुरक्षित हो सके। परिवार के लिए भी यह जानना और व्यवहार में लाना जरूरी है कि जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को मां का पहला पीला गाढ़ा दूध देना बहुत जरूरी है,यह बच्चे में रोगों से लड़ने की शक्ति लाता है।

6 माह से बड़े उम्र के बच्चे को स्तनपान के साथ ऊपरी आहार दिया जाना चाहिए। इसके साथ बच्चे को सूची अनुसर नियमित टीकाकरण और बच्चे 9 माह होने पर उसे नियमित विटामिन ए की खुराक दी जानी चाहिए।
2) पौष्टिक आहार- 6 महीने के बच्चे और उससे बड़े सभी लोगों को भी पर्याप्त मात्रा में तरह-तरह का पौष्टिक आहार आवश्य लेना चाहिए। पौष्टिक आहार में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे कि अनाज, दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां और मौसमी फल लेने चाहिए। हरी सब्जियों में पालक, मेथी, चौलाई और सरसों, पीले फल जैसे आम व पका पपीता खाए जा सकते हैं।

यदि मांसाहारी हैं तो, अंडा, मांस और मछली आदि भोजन में लिया जा सकता है। खाने में दूख, दूध से बने पदार्थ और मेवे आदि शामिल करें। अपने खाने में स्थानीय रूप से उत्पादित पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करें। आंगनबाड़ी से मिलने वाला पोषाहार अवश्य खाएं। यह निश्चित मात्रा में पौष्टिक पदार्थों को मिला कर तैयार किया जाता है।

जब बच्चा 6 महीने का हो जाए तो मां के दूध के साथ घर का बना मसला और गाढ़ा ऊपरी आहार भी शुरू कर देना चाहिए जैसे- कद्दू, लौकी, गाजर, पालक तथा गाढ़ी दाल, दलिया, खिचड़ी आदि। यदि मांसाहारी हैं तो अंडा, मांस व मछली भी देना चाहिए। बच्चे के खाने में ऊपर से 1 चम्मच घी, तेल या मक्खन मिलाएं।बच्चे के खाने में नमक, चीनी और मसाला कम डालें।

प्रारंभ में बच्चे का भोजन एक खाद्य पदार्थ से शुरू करें, धीरे-धीरे खाने में विविधता लाएं। बच्चे का खाना रूचिकर बनाने के लिए अलग-अलग स्वाद व रंग शामिल करें। बच्चे को बाजार का बिस्कुट, चिप्स, मिठाई, नमकीन और जूस जैसी चीजें न खिलाएं। इससे बच्चे को सही पोषक तत्व नहीं मिल पाते।

3) एनीमिया की रोकथाम- स्वस्थ शरीर और तेज दिमाग के लिए एनीमिया की रोकथाम करें। सभी उम्र के लोगों में एनीमिया की जांच और पहचान किया जाना महत्वपूर्ण होता है, ताकि व्यक्ति की हीमोग्लोबिन के स्तर के अनुसार उपयुक्त उपचार प्रारंभ किया जा सके।

एनीमिया की रोकथाम के लिए आयरन युक्त आहार खाएं जैसे- दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां, पालक, मेथी, फल, दूध, दही, पनीर आदि। यदि मांसाहारी है तो, अंडा, मांस व मछली का भी सेवन करें। खाने में नींबू, आंवला, अमरूद जैसे खट्टे फल शामिल करें, जो आयरन के अवशोषण में मदद करते हैं। साथ ही आयरन युक्त पूरक लें।  आयरन युक्त पूरक प्रदान करने के लिए 6-59 माह के बच्चे को हफ्ते में 2 बार 1 मिली. आई.एफ.ए. सिरप,5-9 वर्ष की उम्र में आई.एफ.ए की एक गुलाबी गोली,10-19 वर्ष तक की उम्र में हफ्ते में एक बार आई.एफ.ए की नीली गोली,गर्भवती महिला को गर्भावस्था के चौथे महीने से रोजाना 180 दिन तक आई.एफ. ए की एक लाल गोली,धात्री महिला को 180 दिन तक आई.एफ.ए की एक लाल गोली और कृमिनाश के लिए कीड़े की दवा (एल्बेण्डाजोल) की निर्धारित खुराक दी जाती है।

आंगनबाड़ियों और स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यम से यह खुराक बच्चे को दिलाई जानी चाहिए।
 इसके साथ ही प्रसव के दौरान कुछ सावधानियां भी जरूरी हैं जैसे  कि स्वास्थ्य संस्थाएं जन्म के पश्चात बच्चे की गर्भनाल 3 मिनट बाद ही काटें। इससे नवजात बच्चे के खून में आयरन की मात्रा बनी रहती है।
4) डायरिया का प्रबंधन- स्वस्थ शरीर और कमजोरी से बचाव के लिए डायरिया का प्रबंधन जरूरी है। इसके लिए व्यक्तिगत साफ-सफाई, घर की सफाई, आहार की स्वच्छता का ध्यान रखें और डायरिया से बचाव के लिए हमेशा स्वच्छ पानी पिएं। माताएं 6 माह तक बच्चे को केवल स्तनपान ही करवाएं। कोई और खाद्य पदार्थ यहां तक पानी भी नही दें क्योंकि वह भी बच्चे में डायरिया का कारण बन सकता है।

डायरिया होने पर भी मां स्तनपान नहीं रोके बल्कि बार-बार स्तनपान करवाएं। शरीर को दोबारा स्वस्थ बनाने के लिए 6 माह से बड़े बच्चे को ऊपरी आहार के साथ बार-बार स्तनपान करवाएं। बच्चे को डायरिया होने पर तुरंत ओ.आर.एस. तथा अतिरिक्त तरल पदार्थ दें और जब तक डायरिया पूरी तरह ठीक न हो जाए तब तक जारी रखें। डायरिया से पीड़ित बच्चे को डॉक्टर की सलाह पर 14 दिन तक जिंक दें, अगर दस्त रूक जाए तो भी यह देना बंद नहीं करें।
5) स्वच्छता और साफ-सफाई- स्वास्थ्य और सफाई का हमेशा साथ रहा है।

गंदगी कई बीमारियों का खुला निमंत्रण होती है। इसलिए अपनी स्वच्छता सुनिश्चित करें।हमेशा साफ बर्तन में ढक कर रखा हुआ शुद्ध पानी पिएं, बर्तन को ऊंचे स्थान पर लंबी डण्डी वाली टिसनी के साथ रखें। हमेशा खाना बनाने, स्तनपान से पहले, बच्चे को खिलाने से पहले, शौच के बाद और बच्चे के मल के निपटान के बाद साबुन और पानी से हाथ आवश्य धोएं।

बच्चे को खाना खिलाने से पहले बच्चे के हाथों को साबुन और पानी से जरूर धोएं। शौच के लिए हमेशा शौचालय का उपयोग ही करें। किशोरियां और महिलाएं माहवारी के दौरान व्यक्तिगत साफ-सफाई का ध्यान रखें।

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घर में ही मौजूद है पोषण के सारे आहार

Posted on :15-Sep-2020
घर में ही मौजूद है पोषण के सारे आहार

गृह भ्रमण और बैठकों के माध्यम से दी जा रही जानकारी

ग्राम पंचायत द्वारा मुनगा, केला,आम और सब्जी भाजी के पेड़ एवं बीजों का किया जा रहा वितरण

प्रदेश में महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय पोषण माह के तहत शिशुवती माताओं को पौष्टिक आहार के साथ-साथ पौष्टिक आहार बनाने की सीख भी मिल रही है । साथ ही गर्भवती महिलाओं को गर्भ में पल रहे शिशु की उचित देखभाल के साथ स्वस्थ शिशु के लिए किन पौष्टिक आहार का उपयोग करना है के बारे में भी गृह भ्रमण और बैठकों के माध्यम से जानकारी दी जा रही है ।

इसी कडी में विकाखण्ड अभनपुर के सेक्टर तोरला की ग्राम पंचायत टीला में आंगनबाड़ी क्रमांक 1 से 4 तक में कई गतिविधियों का आयोजन किया गया,  इस दौरान शिशुवती माता जानकी निराला कहती हैं, मुनगा फली हमारे घर के आंगन और खेत में लगी हुई है लेकिन उसके महत्व के बारे में हमें नहीं पता था ।

ग्राम में चल रहे राष्ट्रीय पोषण माह के दौरान पौष्टिक आहार की जानकारी आंगनवाड़ी दीदी से मिली , दीदी ने बताया इसकी पत्तियों में प्रोटीन विटामिन बी 6, विटामिन सी, विटामिन ए, विटामिन ई, आयरन, मैग्नीशियम पोटेशियम, जिंक जैसे तत्व पाये जाते हैं, इसकी फली में विटामिन ई और मुनगा की पत्ती में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाये जाते है ।

मुनगा में एंटी ओग्सिडेंट बायोएक्टिव प्लांट कंपाउंड होते हैं, यह पत्तियां प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत है। एक कप पानी में 2 ग्राम प्रोटीन होता है, यह प्रोटीन किसी भी प्रकार से मांसाहारी स्रोत से मिले प्रोटीन से कम नहीं है क्योंकि इसमें सभी आवश्यक एमिनों एसिड पाए जाते है । जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार होते हैं ।

वहीं 6 माह की गर्भवती सुजाता कहती हैं कि गृह भेंट के दौरान आंगनबाड़ी और मितानिन दीदी ने बताया कि गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चे के लिए मुनगा भाजी कितना लाभकारी है, बच्चा हो जाने के उपरांत दूध पिलाने वाली मां के लिए भी मुनगा भाजी अमृत के समान है । दीदी ने बताया मुनगा की पत्ती को घी में गर्म करके प्रसूता स्त्री को दिए जाने का पुराना रिवाज है, इससे दूध की कमीं नहीं होती और जन्म के बाद भी कमजोरी और थकान का भी निवारण होता है। साथ ही बच्चा भी स्वस्थ रहता है और वजन भी बढ़ता है। मुनगा में पाये जाने वाला पर्याप्त कैल्शियम किसी भी अन्य कैल्शियम पूरक से कई गुना अच्छा है।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता करुणा सोनी ने बताया विभाग द्वारा विभिन्न गतिविधियां का आयोजित किया जा रहा है। ग्राम में सुपोषण के बारे में जागरूकता लाने के लिए स्कूली बच्चों के सहयोग से चित्रकारी, स्लोगन तथा रंगोली द्वारा संदेश बनवाये गये और व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से भी पोषण से संबंधित जागरूकता संदेश दिए जा रहे है।

ग्राम में सुपोषण चौपाल कृषक बैठक का भी आयोजन किया जा रहा है। सुपोषण चौपाल में पौष्टिक आहार से संबंधित जानकारियां दी जा रही है। सुपोषण से संबंधित इन रचनात्मक गतिविधियों के द्वारा महिलाओं तथा बच्चों मे सुपोषण के बारे मे जागरूकता लाई जा रही है। ऐसी बैठकों के माध्यम से ग्राम पंचायत द्वारा मुनगा, केला, आम और सब्जी भाजी के पेड़ एवं बीजों का वितरण भी किया जा रहा है ।

चौपाल और कृषक बैठक के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा, शारीरिक दूरी अपनाकर कृषि कार्यों के साथ-साथ हाथ को अच्छे से धोना । जगह-जगह गुटका खा कर थूकने से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में भी जागरूक किया जा रहा है ।

कोरोना महामारी के इस दौर मे कोविड-19 के संबंधित गाईडलाइन का पालन कर सभी गतिविधियां सम्पन्न की जा रही है। सुपोषण के बारे मे जागरूकता लाने तथा बच्चों, महिलाओं को कुपोषण से बचाने के चित्रकारी, सुपोषण से संबंधित स्लोगन तथा रचनात्मक चित्रकारी को बच्चों के साथ बड़े भी रूचि लेकर सुपोषण का महत्व समझ रहे हैं।

बच्चों तथा महिलाओं को कुपोषण से मुक्ति दिलाने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर पौष्टिक आहार “रेडी टू ईट”का वितरण किया भी किया जा रहा है।

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सिरदर्द को हल्के में ना लें, हो सकता है माइग्रेन का खतरा

Posted on :14-Sep-2020
सिरदर्द को हल्के में ना लें, हो सकता है माइग्रेन का खतरा

TNIS

रायपुर: माइग्रेन की समस्या आजकल अधिकांश लोगों में देखने को मिल रही है। अक्सर ही इसे सामान्य सिरदर्द मानकर लोग इसपर उतना ध्यान नहीं देते हैं।  लेकिन यह साधारण सिरदर्द नहीं है, बल्कि यह विशेष तरह का सिरदर्द है, जिसमें सिर के आधे हिस्से में दर्द होता है, और कई बार छनछनाहट भी महसूस हो सकती है। माइग्रेन जागरूकता सप्ताह के दौरान चिकित्सकों ने सिर में दर्द होने पर डॉक्टरी सलाह लेने की अपील की है।

 माइग्रेन एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है। माइग्रेन जागरूकता सप्ताह हर साल 6 से 12 सितंबर तक मनाया जाता है, ताकि लोगों को माइग्रेन के प्रति जागरूक किया जा सके। अम्बेडकर अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. विजय कुर्रे ने बताया माइग्रेन की समस्या लोगों में काफी देखने को मिल रही है। 10 लोगों में से 4 से 5 व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित हैं। लोगों में माइग्रेन के उपचार के संभावित तरीकों के प्रति जागरूकता की कमी है, जिसके कारण वे इस सिर की बीमारी का सही इलाज नहीं करा पाते हैं। इसलिए जरूरी है लोगों को माइग्रेन की सही जानकारी दी जाए, ताकि वे सिर की बीमारी के प्रति सतर्क रहें।

पुरुषों की तुलना में महिलाओं में समस्या होने की संभावना अधिक - डॉ. विजय कुर्रे ने बताया माइग्रेन आमतौर पर एक मध्यम या गंभीर सिरदर्द होता है, जिसमें सिर के आधे हिस्से में भारीपन महसूस होता है। सिर में असहनीय दर्द कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक रह सकता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में माइग्रेन की समस्या के होने की संभावना अधिक रहती है। कुल माइग्रेन के मरीजों में 85 प्रतिशत महिलाएं और 15 प्रतिशत पुरूष होते हैं। विशेषकर यह बीमारी किशोरावस्था की शुरूआत यानि 13 वर्ष से 45 वर्ष तक के महिला-पुरूषों में ज्यादा देखने को मिलती है। इसका मुख्य कारण तनाव होता है।

माइग्रेन कई तरह के - न्यूरो सर्जन के मुताबिक माइग्रेन कई तरह के होते हैं। इनमें क्लासिक माइग्रेन दृष्टि संबंधी समस्या जैसे- काला धब्बा आना, रोशनी में चकाचौंध नजर आना, सामान्य माइग्रेन यानि तेज सिरदर्द के साथ उल्टी होना, मूड बदलना, मासिक धर्म माइग्रेन यानि मासिक धर्म के शुरू होने की तिथि पर होता है। क्रोनिक माइग्रेन जो कि तनाव की वजह से उत्पन्न होता है। ऑप्टिकल माइग्रेन या आई माइग्रेन , जिसका असर केवल एक आंख पर ही पड़ता है।

लक्षण- किसी व्यक्ति को यह लक्षण नज़र आते हैं, तो उसे इन्हें नज़रअदाज़ नहीं करना चाहिए और इनकी सूचना तुरंत अपने डॉक्टर को देनी चाहिए जैसे- कब्ज का होना, भूख लगना, गर्दन में अकड़न का होना,  थकावट होना, अत्याधिक प्यास लगना एवं बार-बार पेशाब का आना, ज्यादा जम्हाई आना, उल्टी, चक्कर आना आदि।

मूड स्विंग होने पर ले मनोवैज्ञानिक सलाह- मूड स्विंग का होना भी माइग्रेन में देखने को मिलता है। मनोचिकित्सक डॉ. सुचिता गोयल के मुताबिक अगर सिर में दर्द के साथ व्यक्ति परेशान है और उसका मूड बार-बार बदलता है या व्यक्ति इससे परेशान है तो उसे तुंरत मनोवैज्ञानिक से मिलकर इसका इलाज कराना चाहिए।

ऐसे करें बचाव- ज्यादातर लोगों को एलर्जी, तेज खुशबू, बदबू, हेयर डाई, शैंपू के इस्तेमाल, चाय, कॉफी, खट्टे फल, तेज रोशनी, तेज ध्वनि आदि से भी सिर में तेज दर्द माइग्रेन हो सकता है। इसलिए चिकित्सक इन सारी ट्रिगर फैक्टर को पहचानकर  इससे दूर रहने, योगा या मेडिटेशन करने, तनाव कम से कम लेने, भरपूर नींद लेने, पौष्टिक आहार लेने की सलाह देते हैं।

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विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: समय पर परिवार ने समझी परेशानी, बच गई जान

Posted on :09-Sep-2020
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस:  समय पर परिवार ने समझी परेशानी, बच गई जान

TNIS

मानसिक अस्वस्थता पर विजय पाकर दे रहीं औरों को हौसला

महासमुंद: सविता सिंह और पुष्पा (परिवर्तित नाम) आज सामान्य और खुशहाल जीवन जी रही हैं। सविता जहां अपनी पढ़ाई जारी रखी हैं तो वहीं पुष्पा भी अपने परिवार में खुशियां बिखेर रही हैं। इतना ही नहीं सविता पहले की तरह अब कॉलेज की विभिन्न गतिविधियों में भी हिस्सा लेकर कॉलेज सहपाठियों की चहेती हैं और समुदाय को मानसिक स्वास्थ्य , तनाव और अवसाद के प्रति जागरूक भी कर रहीं हैं। दोनों में जीने की ललक उनके परिवार और साथी के प्रयास से संभव हुआ है ।

समय पर सविता और पुष्पा की मानसिक स्थिति और व्यवहार में बदलाव का आंकलन आसपास के लोग नहीं कर पाते, तो शायद दोनों ही अपने जीवन का अंत कर लेतीं।

इन्होंने त्यागा नकारात्मक विचार-

मनोचिकित्सक डॉ. सुचिता ने बताया दो माह पहले ग्रामीण इलाके की 22 वर्षीय सविता जब उनके पास आई तो एकदम शांत, चेहरे पर उदासी, मायूसी, चिंता और शारीरिक दुर्बलता के साथ आत्महत्या का करने पर उतारू थी। डॉ. सुचिता गोयल के मुताबिक वह हमेशा नाराश और बुझी-बुझी सी रहती थी। पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगता था और आत्महत्या का विचार कई बार उसके मन में आता था। लेकिन परिवार के लोगों ने उसकी इस मनोदशा को समझा और समय रहते उन्हें चिकित्सकीय परामर्श के लिए उनके पास लेकर आई। इसके बाद उनकी और उनके परिवार की काउंसिलिंग हुई और आज ना सिर्फ सविता ने आत्महत्या को गलत माना है बल्कि अपनी पढ़ाई पूरी कर औरों के मन में इस तरह उठ रही भावनाओें को दूर करने के प्रयास में जुटी हैं।

 महासमुंद की रहने वाली 45 वर्षीय पुष्पा छह वर्षों से अवसाद और तनाव में थीं। उनके मन में निराशा, हीन भावना ने घर कर रखा था। इसलिए अक्सर उन्हें आत्महत्या करने का विचार आता था। एक दिन उन्होंने आत्महत्या का प्रयास किया Iसमय पर अस्पताल पहुंचने की वजह से उन्हें उनका जीवन वापस मिल गया। परंतु उन्हें जीवित रहने का अफसोस था। मनोचिकित्सक ने उनकी और उनके परिवार की काउंसिलिंग की और जरूरी दवाएं भी दी, आज वह खुशहाल जीवन जी रही हैं।

मामूली मदद किसी की बचा सकती है जान -

मनोचिकित्सक डॉ. सुचिता कहती हैं “हमारे आस-पास कोई ऐसा व्यक्ति (महिला या पुरुष) है, जिसका व्यवहार पहले की अपेक्षा असामान्य सा हो रहा है तो उस वक्त ही उसकी परेशानी समझनी चाहिए। ऐसा करने से उस व्यक्ति के मन में आ रहे आत्महत्या के विचार को खत्म कर, जीने की आस जगाई जा सकती है।“ डॉ. गोयल के अनुसार कुछ परिस्थियां होती हैं जिसे देखकर व्यक्ति की मनोदशा को पहचाना जा सकता है। जैसे- लोगों के व्यवहार में बदलाव आना, नकारात्मक सोच रखना, जीवन के प्रति निराश होना, चिड़चिड़ाना, गुमसुम रहना, मिलने-जुलने से कतराना आदि। ऐसे व्यवहार वाले लोगों की उपेक्षा नहीं करें, उनकी बात को सुनें और किसी मनोचिकित्सक से फौरन उसे परामर्श करने की सलाह दे। हो सके तो उन्हें लेकर जाएं।

मुख्य कारण-

मनोचिकित्सक के अनुसार आत्महत्या का विचार आने का मुख्य कारण निराशा और मानसिक तनाव है। इसके अलावा अवसाद, चिंता, मादक द्रव्यों का सेवन, सिज़ोफ्रेनिया, जीवन में कई विफलताएं हो सकती हैं जैसे -उपेक्षा, अनउपलब्धियां, रिश्ते आदि। अधिकांश लोग ऐसे घातक विचारों के बारे में अपने परिवार, दोस्तों से इसकी चर्चा नहीं करते हैं और मनोचिकित्सकीय परामर्श भी नहीं लेते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य पर चल रहे कई कार्यक्रम-

राष्ट्रीय अपराध  रिकॉर्ड ब्यूरो (एन सी आर बी) 2019 के आंकड़ों के अनुसार 26.4 प्रति 100,000 व्यक्ति की दर के साथ छत्तीसगढ़ देश में सर्वाधिक आत्महत्या की दरों वाले राज्यों में से एक है। इनको ध्यान में रख, तनाव प्रबंधन और लोगों की मदद करने मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं। महासमुंद  में प्रशासन की पहल पर `नवजीवन 'का शुभारंभ किया गया। तनाव आत्म-क्षति का एक प्रमुख कारण या ट्रिगर है इस भावना के मद्देनजर जिला मुख्यालय से गांवों तक मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा करने कि मुहीम छेड़ी गई है। आत्महत्या की रोकथाम और तनाव प्रबंधन के अलावा, जीवन कौशल के लिए प्रशिक्षण, विशेषज्ञों द्वारा मुफ्त परामर्श और मानसिक विकारों वाले लोगों की पहचान करने जैसी गतिविधियां भी की जा रही हैं।

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