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शशि अपने पिता को मानते थे ज़िंदगी का रोल मॉडल

शशि अपने पिता को मानते थे ज़िंदगी का रोल मॉडल

हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और फिल्म निर्माता शशि कपूर का नाम सामने आते ही हमारी आंखों के सामने उनकी रोमांटिक छवि आ जाती है। अपने दौर में शशि ने सिने पर्दे पर रोमांस की नई परिभाषा गढ़ीं। उनकी फिल्मों और उनमें फिल्माए गए गानों को हर पीढ़ी के लोगों के बीच खूब पसंद किया गया। दुनिया से चले जाने के वर्षों बाद भी वे आज भी सिने पर्दे पर अपनी बेहतरीन अभिनय शैली के लिए लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं। आइए जानते है उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

4 साल की उम्र में शुरू हो गया था अभिनय करियर
अभिनेता शशि कपूर का जन्म 18 मार्च, 1938 को बंगाल के कलकत्ता शहर में मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक पृथ्वीराज कपूर के घर में हुआ था। शशि का असल नाम बलबीर राज कपूर था। आपको जानकर हैरानी होगी मगर शशि ने महज चार साल की उम्र में ही अभिनय करना शुरू कर दिया था। शशि बचपन में अपने पिता पृथ्वीराज कपूर द्वारा निर्देशित किए गए नाटकों में अभिनय किया करते थे। वर्ष 1940 के दौरान शशि ने बतौर बाल कलाकार सिने पर्दे के लिए कई फिल्मों में काम किया। मगर बाल कलाकार के रूप में उन्हें वर्ष 1951 में रिलीज़ फिल्म ‘आवारा’ से पहचान मिलीं। इसमें शशि ने राज कपूर की किशोर अवस्था की भूमिका निभाई थी।

राज कपूर इसलिए बुलाते थे शशि को ‘टैक्सी’
बतौर अभिनेता शशि कपूर ने वर्ष 1961 में आई फिल्म ‘धर्मपुत्र’ से अपने सिने सफर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने ‘दीवार’, ‘कभी कभी’, ‘बसेरा’, ‘आ गले लग जा’, ‘नमक हलाल’, ‘वक्त’ ‘त्रिशूल’, ‘सुहाग’ जैसी फिल्मों में काम किया, जो की पर्दे पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई। राज कपूर अभिनेता शशि कपूर को ‘टैक्सी’ कहा करते थे। दरअसल, शशि बिजी शेड्यूल के कारण अक्सर टैक्सी में सो जाया करते थे। वे अपने को-स्टार्स को टैक्सी और कार से छोड़ने और लेने जाया करते थे।

शशि अपने पिता को मानते थे ज़िंदगी का रोल मॉडल
वर्ष 1970-1975 के दौरान शशि कपूर सुप्रसिद्ध अभिनेता देव आनंद और राजेश खन्ना के बाद सबसे अधिक मेहनताना लेने वाले अभिनेता हुआ करते थे। उनकी एक फिल्म ‘दीवार’ के डायलॉग ‘मेरे पास मां है’ ने उन्हें अमर बना दिया। शशि अपने पिता पृथ्वीराज को अपनी ज़िंदगी का रोल मॉडल माना करते थे। यही वजह है कि उनके जाने के बाद शशि ने उनके सपने को पूरा किया। वो शशि ही थे जिन्होंने वर्ष 1978 में मुंबई के जुहू इलाके में पृथ्वी थियेटर खोल अपने पिता के सपने को पूरा कर दिखाया।

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