लक्ष्मी कांत पटेल
क्या करें और क्या न करें?
Aeticle : दुनिया का हर धर्म किसी धर्म की आलोचना और मीमांसा करके आगे बढ़ा है। एक धर्म की मान्यताओं को ध्वस्त करके ही दूसरा धर्म आगे आ सकता है। इसलिए सभी धर्म दूसरे धर्म को लेकर आलोचनात्मक दृष्टि रखते हैं। इसे लेकर मारपीट, हिंसा, हत्या और मुक़दमेबाजी का इतिहास रहा है। पूरा क्रूसेड लड़ा गया धर्म के आधार पर। ये झूठ है कि धर्म जोड़ता है। धर्म उसी यानी समान धर्म के लोगों को जोड़ता है। हर धर्म बाक़ी धर्मों के लोगों से लड़ाता है। धर्म के नाम पर जितनी हिंसा हुई है उससे ज़्यादा हिंसा सिर्फ़ विश्व युद्धों में देखी गई है।
तो ये तो नहीं बदलने वाला।
धर्म बनाम विज्ञान/संविधान/लोकतंत्र की लड़ाई भी पुरानी है। धर्म ने बताया धरती चपटी है। विज्ञान ने कहा - ग़लत। गोल है। धर्म ने कहा सूर्य धरती के चक्कर लगाता है। विज्ञान ने दूरबीन से देखकर कहा -ग़लत। धरती सूर्य के चक्कर लगाती है। धर्म ने कहा कि आदमी जन्म से ऊँचा या नीचा होता है। संविधान ने कहा कि ये बकवास है। धर्म ने कहा ईश्वर आसमान में बहुत ऊपर स्वर्ग में रहता है।
विज्ञान ने कहा कि बहुत ऊपर तो ऑक्सीजन ही नहीं है। ईश्वर तो वहाँ मर चुका होगा।धर्म की मान्यताओं को ग़लत बताने के लिए ब्रूनो को चौक पर ज़िंदा जला दिया गया। वैज्ञानिकों को देश निकाला दिया गया।
तो ये भी जारी रहने वाला है।
लेकिन निजी जीवन में धर्म की आलोचना का ताप एक साधारण आदमी कैसे झेले? धर्म की प्रतिक्रिया तो हमेशा हिंसक होती है। आज भी होगी।
सोशल मीडिया युग में इसे समझना बेहद ज़रूरी है।
1. बिना वजह धर्म आलोचना न करें। धर्म की आलोचना से धर्म कमजोर नहीं होता। धर्म मानव जीवन में अभी रहेगा। लोग धर्म नहीं छोड़ते। विकल्प अपनाते हैं। नास्तिकता भारत जैसे देशों में जनसाधारण का रास्ता नहीं है।
2. ज़्यादातर आलोचना, ईश निंदा निरर्थक होती है। निजी उत्तेजना के लिए लोग ये करते हैं। बचना चाहिए। आधुनिकता धर्म को पीछे धकेल रही है। ये होगा। पर समय लगेगा
3. आलोचना करें तो इस बात का ध्यान रखें कि आपको अपना पक्ष कोर्ट ही नहीं जनता की अदालत में भी साबित करना पड़ सकता है। क्या आपके पास केस लड़ने का साधन है? क्या आपके पीछे खड़े होने के लिए लोग हैं?
4. पेरियार के पीछे करोड़ों लोग थे। इसलिए कर दी सनातनी भगवानों की आलोचना। पेरियार तमिलनाडु का विजयी विचार है। क्या आप वैसे हैं? बाबा साहब और महात्मा फुले कर पाए क्योंकि अंग्रेज थे जो इन मामलों में निष्पक्ष थे। गुलामगिरी या एनिहिलेशन ऑफ कास्ट या रिडल्स इन हिंदुइज्म आज लिखना मु़्श्किल होता।
5. पढ़ने लिखने वाले छात्रों और युवाओं को इन बातों से दूर ही रहना चाहिए। आप जवाबी हमले को झेल नहीं पाएँगे। बेकार पिस जाएँगे